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कविता

तुम्हें कहाँ देखा

राकेश रंजन


इससे पहले भी तुम्हें
कहीं देखा है !

विदर्भ के किसानों के साथ
तुम नहीं थे
सिंगुर और नंदीग्राम में भी नहीं
फिर कहाँ देखा तुम्हें

क्या तुम किसी राहत-शिविर में
वालंटियर थे
किसी बाढ़ या भूकंप के मारों के साथ
मुझे ठीक-ठीक याद नहीं
खोए हुए बच्चे को उसके घर पहुँचानेवाले
क्या तुम्हीं थे
रात में फँसे उस आदमी को बचानेवाले
किसी जुलूस में शामिल
किसी आंदोलन में शरीक

शायद किसी जलसे में देखा तुम्हें
पटना या दिल्ली के किसी मंच पर

सुनामी के बाद
समुद्र के शैतान जबड़ों में
इनसानी संभावना तलाशनेवालों में
तुम नहीं थे

फिर कहाँ देखा... कहाँ देखा...
तुम्हें कहाँ देखा राकेश रंजन

 


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